पंकज तिवारी
बाराबंकी। कार्तिक मास की आहट के साथ ही सुहागिन महिलाओं के प्रिय पर्व करवा चौथ का उत्साह चारों ओर नजर आने लगा है। गुरुवार को जिले के बाजारों में चूड़ियों, साड़ियों, श्रृंगार सामग्री और पूजा सामग्रियों की खरीददारी को लेकर महिलाओं की भीड़ उमड़ी रही। हर तरफ सजे मेहंदी के स्टॉल और चमकते करवे इस पवित्र पर्व के उल्लास की गवाही दे रहे थे।
लोकप्रियता के आधार पर करवा चौथ आज भारत का सबसे मान्य और प्रिय पर्व माना जाता है। यह व्रत पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और अटूट सौभाग्य की कामना के लिए किया जाता है। महिलाएं दिनभर निर्जला उपवास रखकर संध्या में चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत खोलती हैं।
सनातन परंपरा में करवा चौथ को न केवल सौभाग्य का प्रतीक माना गया है, बल्कि इसे ऋतु परिवर्तन और नवचेतना का पर्व भी कहा गया है। कार्तिक मास का यह समय उत्सवों का प्रारंभ होता है- सुख, समृद्धि और कर्म के नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, “चंद्रमा मनसो जातः” चंद्रमा मन का प्रतीक है। करवा चौथ के दिन चंद्र दर्शन न केवल एक धार्मिक क्रिया है, बल्कि प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीकात्मक उत्सव भी है। इस दिन का हर क्षण वैवाहिक जीवन में अटूट विश्वास, त्याग और साथ निभाने की भावना को और प्रगाढ़ करता है।
करवा चौथ का यह पर्व केवल व्रत या परंपरा नहीं, बल्कि प्रेम और आस्था का उत्सव है। यह वही संस्कार है जो भारतीय नारी की भावना को सजीव बनाता है – “अचल होऊ अहिवातु तुम्हारा, जब लगि गंग जमुन जलधारा” माता कौशल्या द्वारा सीता जी को दिया गया यह आशीर्वाद आज भी हर सौभाग्यवती स्त्री की भावना का प्रतीक है।
