आर. स्टीफन
चिरमिरी, छत्तीसगढ़। एमसीबी जिले के चिरमिरी क्षेत्र स्थित साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) की बरतूंगा ओपन कास्ट खदान में पिछले कई दिनों से लगी भीषण आग अब विकराल रूप धारण कर चुकी है। आग से लाखों टन कोयला जलकर राख में तब्दील हो रहा है, जिससे जहां सरकार को करोड़ों रुपये की आर्थिक क्षति हो रही है, वहीं आसपास के रहवासियों का जीवन भी खतरे में पड़ गया है।
राख और जहरीली गैसों से जनजीवन प्रभावित
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, आग से निकलने वाली जहरीली गैसें और राख अब पास के डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल, श्रमिक आवास, मंदिर, मस्जिद और साप्ताहिक बाजारों तक फैल चुकी हैं। आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की आंखों में जलन और सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं।
रहवासियों का कहना है कि रात-दिन जलती राख और धुएं से घरों के अंदर तक काली परत जमने लगी है।
प्रबंधन और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर उठे सवाल
स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस गंभीर समस्या को लेकर SECL प्रबंधन और जनप्रतिनिधि दोनों ही मौन हैं। जब मीडिया ने SECL चिरमिरी क्षेत्र के अधिकारियों से इस संबंध में बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
इस लापरवाही से नाराज नागरिकों का कहना है कि “जहां लाखों टन कोयला जल रहा है और करोड़ों की सरकारी संपत्ति नष्ट हो रही है, वहां जिम्मेदार अधिकारियों की चुप्पी सवाल खड़े करती है।”
मानवाधिकार संगठन ने जताई गहरी चिंता
इस मामले पर भारतीय मानवाधिकार महासंघ, छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष शारदा प्रसाद ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि “यह सिर्फ कोयले की आग नहीं, बल्कि जनजीवन और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा है। प्रशासन को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।”
उन्होंने बताया कि महासंघ ने इस संबंध में उच्च अधिकारियों को पत्र लिखकर मामले की जांच और त्वरित राहत उपायों की मांग की है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो महासंघ इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग करेगा, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि लाखों टन कोयला जलने और सरकारी हानि के लिए जिम्मेदार कौन है।
संकट गहराने का खतरा
स्थानीय पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर समय रहते इस आग पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो यह आसपास के स्कूलों, बाजारों और आवासीय क्षेत्रों के लिए बड़ा खतरा बन सकती है। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि क्षेत्र में तत्काल फायर सेफ्टी और पर्यावरण नियंत्रण टीमों की तैनाती की जानी चाहिए।
