मुफ्त जांच की सुविधा के बावजूद बाहर भेजे जा रहे मरीज- सरकार की मंशा पर पानी
सीएचसी खीरों में जांच के नाम पर जारी है खेल, गरीब मरीजों की जेब पर डाका
टीबी मुक्त भारत मिशन पर सवाल, सरकारी अस्पताल में मरीजों से कराई जा रही बाहर जांच
स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी से जनता परेशान, कब होगी दोषियों पर कार्रवाई?
रायबरेली। सरकार की ओर से मुफ़्त जांच और उपचार की सुविधा देने के बावजूद, खीरों सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पर मरीजों से बाहर की पैथोलॉजी से जांच कराने की सिफारिश के मामले थम नहीं रहे हैं। ताज़ा मामला शनिवार का है, जब टीबी का इलाज करा रही क्षेत्र की एक युवती को सीएचसी के लैब टेक्नीशियन ने बाहर से टीबी गोल्ड जांच कराने को कहा, जिसकी कीमत 3500 रुपये बताई गई।
स्थानीय लोगों ने इस मामले पर गहरी नाराज़गी जताई है और कहा कि ऐसे मामलों से न केवल गरीब मरीजों का आर्थिक शोषण हो रहा है, बल्कि सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
कमीशनखोरी का खेल जारी
यह कोई पहला मामला नहीं है। बीते महीने भी कई मरीजों और उनके परिजनों ने आरोप लगाया था कि कुछ डॉक्टर और नर्स मरीजों को निजी पैथोलॉजी से जांच कराने के लिए कहते हैं, जिससे उन्हें कमीशन प्राप्त होता है। इन मामलों की शिकायत मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) से भी की जा चुकी है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि शिकायत के बाद अक्सर मामले को “आंतरिक स्तर पर निपटा” दिया जाता है और जांच की औपचारिकता तक सीमित रह जाती है।
टीबी मुक्त भारत अभियान पर सवाल
केंद्र और राज्य सरकारें राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) के तहत भारत को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही हैं। इस योजना के तहत मरीजों को निःशुल्क जांच, उपचार, पोषण सहायता और अन्य सुविधाएं दी जाती हैं।
निक्षय पोषण योजना के तहत हर मरीज को 1000 रुपये प्रतिमाह पोषण सहायता दी जाती है। इसके बावजूद जब मरीजों से 3500 रुपये तक की जांच फीस मांगी जाती है, तो यह अभियान की पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
पिछले मामलों में भी उठ चुकी हैं शिकायतें
करीब दो सप्ताह पहले पूरे ढकवा मजरे खीरों की एक महिला से उसके पति की टीबी जांच के नाम पर 500 रुपये मांगे जाने का मामला भी सामने आया था। अब दोबारा ऐसे ही आरोपों से स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की बू महसूस की जा रही है।स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह स्थिति केवल एक या दो मामलों तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यवस्था-स्तरीय समस्या बन चुकी है।
कब होगी कार्रवाई?
स्वास्थ्य केंद्र में व्याप्त इन अव्यवस्थाओं पर कार्रवाई की मांग तेज हो रही है। लोगों का कहना है कि हर बार मामला समाचार माध्यमों में आने के बाद अधिकारी कुछ समय के लिए सक्रिय होते हैं,परंतु कुछ ही दिनों में फिर वही स्थिति लौट आती है।अगर शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई तो स्थानीय नागरिक जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के उच्चाधिकारियों से सामूहिक शिकायत करने की तैयारी कर रहे हैं।
खीरों सीएचसी का यह मामला केवल एक स्वास्थ्य केंद्र की समस्या नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की जवाबदेही से जुड़ा प्रश्न है।
जब टीबी जैसी गंभीर बीमारी के इलाज में भी मरीजों से धन वसूला जा रहा है, तो यह सरकार की “स्वस्थ भारत मिशन” की भावना के विपरीत है। जरूरत है कि जिले का स्वास्थ्य विभाग इस मुद्दे को संवेदनशीलता और पारदर्शिता से ले-ताकि जनता का भरोसा सरकारी चिकित्सा सेवाओं पर कायम रह सके।
