रायबरेली। जनपद रायबरेली में सर्पदंश (Snakebite) से होने वाली मृत्यु और स्वास्थ्य जटिलताओं को कम करने के उद्देश्य से शनिवार को महात्मा गांधी सभागार, विकास भवन में एक दिवसीय सर्पदंश न्यूनीकरण प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण में जिले के विभिन्न अस्पतालों के 50 चिकित्सकों ने प्रतिभाग किया।
सर्पदंश के मामलों में त्वरित निर्णय आवश्यक: राहत आयुक्त
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राहत आयुक्त भानूचंद्र गोस्वामी ने कहा कि सर्पदंश के बढ़ते मामलों को देखते हुए चिकित्सकों को वैज्ञानिक और व्यावहारिक दोनों प्रकार का प्रशिक्षण आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों में समय पर प्राथमिक उपचार और सटीक पहचान से अनेक जिंदगियां बचाई जा सकती हैं।
राज्य स्तर पर प्रबंधक कार्मिक शांतनु द्विवेदी ने कार्यक्रम के संचालन का दायित्व संभाला, जबकि सर्पदंश कंसल्टेंट काव्या शर्मा ने तकनीकी रूपरेखा तैयार की और प्रशिक्षण की वैज्ञानिक विषयवस्तु प्रस्तुत की।
विशेषज्ञों ने दिए महत्वपूर्ण सुझाव
अपर जिलाधिकारी (वि०रा०) अमृता सिंह और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ डा० ऋषि बागची ने स्वागत भाषण देते हुए चिकित्सकों से इस प्रशिक्षण को व्यवहारिक कार्यशैली में अपनाने की अपील की। सर्पदंश के क्लिनिकल प्रबंधन पर बोलते हुए डा० गौरव पाण्डेय और डा० सचिन निगम ने कहा कि चिकित्सकों को सर्पदंश के मामलों में त्वरित निर्णय और उपचार की दिशा में शीघ्र कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि देरी कई बार जानलेवा साबित होती है।
जिला आपदा विशेषज्ञ अंकित पाण्डेय ने कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों को आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण से भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि किसी भी आपात स्थिति में वे प्रभावी प्रतिक्रिया दे सकें।
विषैले और गैर-विषैले सर्पों की पहचान पर जोर
ए०के० भारद्धाज और रितेश पाण्डेय ने सर्पदंश की पहचान पर जानकारी देते हुए बताया कि हर सर्पदंश जानलेवा नहीं होता, परंतु पहचान में लापरवाही घातक साबित हो सकती है।
उन्होंने बताया कि रक्तस्राव, मांसपेशियों में कमजोरी, पसीना आना और सांस लेने में कठिनाई जैसे लक्षण विषैले सर्पदंश की ओर संकेत करते हैं।
ग्रामीण चिकित्सकों की भूमिका पर चर्चा
डा. इफ्तिखार अहमद और डा. पी.के. गुप्ता ने कहा कि गांवों में डॉक्टर सिर्फ सर्पदंश का इलाज ही नहीं करते, बल्कि लोगों को इसके बारे में जागरूक भी करते हैं। उन्होंने बताया कि अगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर सर्पदंश की दवा (एंटी-वेनम) हमेशा उपलब्ध रहे, मरीजों को तुरंत बड़े अस्पताल भेजने की व्यवस्था हो और गांवों में लोगों को सर्पदंश से बचाव की जानकारी दी जाए- तो यह अभियान सफल हो सकता है।
