लखनऊ। सरोजनीनगर विधानसभा में सेवा, श्रद्धा और संकल्प का अनोखा संगम देखने को मिला जब विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने सोमवार को 51वीं “रामरथ श्रवण अयोध्या यात्रा” को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। ग्रामसभा सरैयां के सैकड़ों श्रद्धालु तीन बसों में सवार होकर “जय श्रीराम” के जयघोष के साथ भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या के लिए रवाना हुए।
51वीं यात्रा- सेवा और समर्पण का विस्तार
यह यात्रा उस वादे की पूर्ति थी जो डॉ. राजेश्वर सिंह ने 4 नवम्बर 2025 को प्रबुद्धजन सम्मेलन के दौरान किया था, उन्होंने घोषणा की थी कि सरैयां ग्रामसभा के श्रद्धालुओं को अयोध्या दर्शन के लिए तीन बसें भेजी जाएंगी। सोमवार को यह वादा पूरा हुआ, और तीनों बसों के साथ शुरू हुई भक्ति, संगठन और जनसेवा की अनोखी परंपरा।
श्रद्धालुओं के स्वागत में सेवा का भाव
यात्रा के आरंभ में विधायक की टीम के कार्यकर्ताओं ने श्रद्धालुओं को शाल और पटका पहनाकर सम्मानपूर्वक बसों में बिठाया। पूरे मार्ग में यात्रियों के भोजन, जलपान, स्वास्थ्य और विश्राम की व्यवस्था रही। टीम के कार्यकर्ताओं ने सेवा को ही भक्ति का स्वरूप बनाते हुए पूरी यात्रा को एक आध्यात्मिक और मानवीय अनुभव में परिवर्तित कर दिया।
तीन वर्षों से जारी श्रद्धा की परंपरा
यह यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक सामाजिक और मानवीय मिशन है। विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने यह यात्रा अपनी माता स्वर्गीय तारा सिंह जी की स्मृति में आरंभ की थी। पिछले तीन वर्षों में अब तक 8,000 से अधिक श्रद्धालु, विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिक और महिलाएं अयोध्या दर्शन कर चुके हैं।
डॉ. राजेश्वर सिंह का संदेश
“हमारा उद्देश्य उन लोगों तक अयोध्या की यह पावन यात्रा पहुँचाना है, जिनके लिए यह आस्था का सफर एक सपना भर था। ‘रामरथ श्रवण यात्रा’ मातृशक्ति और वरिष्ठ नागरिकों के सम्मान का प्रतीक है।”
डॉ. राजेश्वर सिंह, विधायक, सरोजनीनगर
राजनीति से ऊपर उठकर जनसेवा का संकल्प
डॉ. राजेश्वर सिंह की यह पहल केवल राजनीति नहीं, बल्कि जनसेवा की एक जीवंत साधना है। यह यात्रा समाज में सद्भाव, सेवा और सांस्कृतिक चेतना की अलख जगा रही है, जहाँ हर बस में भक्ति के साथ आत्मीयता का भाव भी साथ चलता है।
रामरथ यात्रा: सरोजनीनगर की पहचान बन चुकी है परंपरा
हर यात्रा के साथ क्षेत्र के लोगों में एक नई ऊर्जा और आध्यात्मिक चेतना का संचार होता है। श्रद्धालु जब अयोध्या से लौटते हैं, तो वे केवल दर्शन नहीं, बल्कि सेवा और संस्कार का संदेश लेकर घर पहुँचते हैं।
