शकील अहमद
सरोजनीनगर (लखनऊ)। सरोजनीनगर विधानसभा में “सेवा ही संकल्प” के मंत्र को साकार करते हुए विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह के जनकल्याणकारी अभियान ‘आपका विधायक-आपके द्वार’ का 143वां जनसुनवाई शिविर रविवार को ग्रामसभा रहीमाबाद में आयोजित हुआ। यह शिविर केवल समस्याओं के समाधान का मंच नहीं, बल्कि जनता के विश्वास और शासन की संवेदनशीलता का जीवंत उदाहरण बन गया।
त्वरित समाधान : जनता के विश्वास की पहचान
जनसुनवाई शिविर में स्ट्रीट लाइट, पीएम आवास, नाली, सड़क, आयुष्मान कार्ड, वृद्धावस्था पेंशन जैसी लगभग 20 जनसमस्याओं का मौके पर ही समाधान किया गया। शिविर के दौरान 5 आयुष्मान कार्ड और 1 आय प्रमाण पत्र वहीं बनवाए गए। यह पहल दिखाती है कि डॉ. राजेश्वर सिंह के नेतृत्व में प्रशासन अब “फाइल से नहीं, फील्ड से” संचालित हो रहा है।
स्वास्थ्य सुरक्षा : हर द्वार तक स्वास्थ्य का अधिकार
जनसेवा के तहत K.K. हॉस्पिटल के सहयोग से निःशुल्क स्वास्थ्य एवं नेत्र शिविर आयोजित किया गया। शिविर में ग्रामीणों की आंखों की जांच की गई और 50 जरूरतमंद नागरिकों को चश्मे वितरित किए गए। यह केवल इलाज नहीं, बल्कि दृष्टि और जागरूकता प्रदान करने का कार्य था।
गांव की शान–मेधावी सम्मान से नई प्रेरणा
‘गांव की शान’ पहल के अंतर्गत बोर्ड परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले 4 मेधावी विद्यार्थियों प्रत्यूषा यादव (81%), आर्यन यादव (65%), आनंद (65%) और अभिनव यादव (64%) को साइकिल, घड़ी और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। यह पहल शिक्षा के क्षेत्र में ग्रामीण प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने का प्रतीक बनी।
युवा सशक्तिकरण : सरोजनीनगर में खेल क्रांति की दिशा
शिविर में युवाओं को संगठित करने के लिए 155वां और 156वां बॉयज यूथ क्लब, तथा 92वां गर्ल्स यूथ क्लब गठित किया गया। युवाओं को कैरम, वॉलीबॉल, फुटबॉल और क्रिकेट किट जैसे खेल संसाधन प्रदान किए गए। यह पहल खेल के माध्यम से युवाओं को नशामुक्ति, अनुशासन और टीम भावना की ओर प्रेरित कर रही है।
सम्मान और सहयोग : समाज की आत्मा का स्पर्श
कार्यक्रम में मंडल अध्यक्ष के. के. श्रीवास्तव, सेक्टर संयोजक हरिश्चंद्र, बूथ अध्यक्ष हरि प्रकाश, दिलीप कुमार, सतीश कुमार, वीरेंद्र वर्मा, अनीता देवी, शिव कुमार समेत अनेक पदाधिकारियों और ग्रामीणों को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया। साथ ही ताराशक्ति निःशुल्क रसोई के माध्यम से उपस्थित ग्रामीणों को भोजन वितरित किया गया, जिससे यह शिविर केवल संवाद नहीं, बल्कि संवेदना का उत्सव बन गया।
