आत्म कल्याण के लिए जीवित गुरु आवश्यक, किताबें पर्याप्त नहीं: बाबा उमाकांत जी महाराज का सीतापुर में प्रवचन

सीतापुर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़, गुरु के मार्ग से भटकाने वालों को दी चेतावनी

शकील अहमद

सीतापुर। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी और इस युग के समर्थ संत बाबा उमाकांत जी महाराज ने मंगलवार को सीतापुर में आयोजित कार्तिक पूर्णिमा सतसंग और नामदान कार्यक्रम में आत्म कल्याण के मूल सूत्र बताए। उज्जैन से पधारे महाराज जी के प्रवचन को सुनने के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रही।

महाराज जी ने कहा कि “आत्म कल्याण के लिए जीवित गुरु की आवश्यकता होती है। केवल किताबें पढ़ने से मुक्ति नहीं मिलती। जैसे विद्यालय में शिक्षक की जरूरत होती है, वैसे ही मोक्ष प्राप्ति के लिए जीवित गुरु जरूरी हैं।” उन्होंने कहा कि गुरु के बताए मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति कभी भटक नहीं सकता और न ही जीवन में अंधकार रह सकता है।

स्वार्थ में गुरु मार्ग से भटकाने वालों को चेतावनी

बाबा उमाकांत जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि “जो लोग स्वार्थवश दूसरों को भ्रम में डालते हैं और उन्हें आत्म कल्याण से दूर करते हैं, उन्हें मृत्यु के बाद सख्त सजा भुगतनी पड़ेगी।” उन्होंने याद दिलाया कि बाबा जयगुरुदेव जी ने वर्ष 2012 में अपने जीवनकाल में ही उन्हें आध्यात्मिक उत्तराधिकारी घोषित किया था और 2017 में उन्हें नामदान व साधकों की संभाल का कार्य सौंपा गया था।

महाराज जी ने कहा कि वे अपने गुरु के आदेश का अक्षरशः पालन कर रहे हैं और सभी साधकों से भी यही अपेक्षा करते हैं कि वे गुरु मिशन को आगे बढ़ाएं।

सुमिरन, ध्यान और भजन ही मुक्ति का मार्ग

महाराज जी ने साधकों को सत्संग में समझाया कि “सुमिरन, ध्यान और भजन करने वाला व्यक्ति न केवल इस जीवन में सुखी रहता है, बल्कि मृत्यु के बाद भी उसकी आत्मा की रक्षा होती है। जो ध्यान-भजन नहीं करते, वे अंधकार में भटकते रहते हैं।” उन्होंने श्रद्धालुओं से कहा कि यह जीवन जो मिला है, इसका उपयोग भक्ति और आत्म सुधार में करना चाहिए।

श्रद्धालुओं में उमड़ा उत्साह

सीतापुर के विशाल मैदान में आयोजित इस कार्यक्रम में हजारों श्रद्धालु दूर-दराज़ के जिलों से पहुंचे। पूरे परिसर में ‘जयगुरुदेव’ और ‘सतगुरु महाराज की जय’ के जयघोष गूंजते रहे।

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