लखनऊ। राजधानी लखनऊ के कांशीराम स्मारक स्थल पर गुरुवार को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती ने अपनी ताकत का बड़ा प्रदर्शन किया। यह रैली बसपा संस्थापक कांशीराम की 19वीं पुण्यतिथि के मौके पर आयोजित की गई थी।
बसपा का दावा है कि रैली में 5 लाख से अधिक कार्यकर्ता जुटे, जबकि स्वतंत्र स्रोतों के अनुसार भीड़ लगभग दो से तीन लाख के बीच रही। रैली का उद्देश्य 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के कैडर को दोबारा सक्रिय करना था।
रैली का माहौल और मायावती का संबोधन
सुबह से ही बसपा कार्यकर्ताओं का हुजूम लखनऊ की सड़कों पर दिखाई दिया। नीले झंडों, बैनरों और “बहनजी ज़िंदाबाद” के नारों से शहर गूंज उठा। मायावती ने कांशीराम की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर रैली की शुरुआत की।
अपने भाषण में उन्होंने कहा कि बसपा अब किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी, बल्कि अकेले चुनाव लड़ेगी। उन्होंने आरोप लगाया कि विरोधी दलों ने हमेशा दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को हाशिए पर रखा। मायावती ने कहा कि “संविधान की रक्षा और आरक्षण का पूरा लाभ दिलाना हमारी पहली प्राथमिकता है।”
उन्होंने सपा और कांग्रेस पर निशाना साधा, वहीं योगी सरकार द्वारा कांशीराम स्मारक की मरम्मत को “जनहित में फैसला” बताया।
आकाश आनंद की नई भूमिका
रैली में मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने भी जोरदार भाषण दिया। उन्होंने कहा कि “यूपी में पांचवीं बार बसपा की सरकार बनेगी।” मायावती ने उन्हें युवा नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी। पार्टी सूत्रों के मुताबिक आने वाले समय में आकाश को प्रदेश स्तर पर बड़ा दायित्व दिया जा सकता है।
राजनीतिक असर: क्या बदलेगा समीकरण?
यह रैली 2024 लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद बसपा के लिए “पुनरुत्थान” का प्रयास मानी जा रही है।
विश्लेषकों के अनुसार:-
रैली ने बसपा के जाटव-दलित कोर वोट बैंक में नई ऊर्जा भरी है।
PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण को सपा से छीनने की कोशिश दिखी।
मायावती का “अकेले चुनाव लड़ने” का ऐलान पार्टी को आत्मनिर्भर दिखाता है।
हालांकि, विरोधियों ने इसे अलग नजरिए से देखा।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
अखिलेश यादव (सपा प्रमुख) ने कहा कि “मायावती की रैली भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए की गई।” वही कांग्रेस नेताओं ने भी बसपा पर “दलित वोट तोड़ने” का आरोप लगाया। वहीं भाजपा ने आधिकारिक टिप्पणी नहीं की, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं ने रैली को “संतुलित राजनीति का उदाहरण” बताया।
पिछले कुछ वर्षों में बसपा का ग्राफ लगातार गिरा है। 2014 से अब तक कई वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ चुके हैं और संगठन कमजोर पड़ा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को केवल एक सीट ही मिल पाई थी। मायावती के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब भरोसा और बूथ स्तर का संगठन दोबारा खड़ा करने की है।
रैली की भारी भीड़ ने यह तो साबित किया कि बसपा का कैडर अब भी जीवित है, लेकिन यह भी साफ है कि 2027 तक के रास्ते में पार्टी को लंबा सफर तय करना होगा। मायावती की यह रैली बसपा के लिए एक नई शुरुआत हो सकती है, अगर संगठन ज़मीनी स्तर पर सक्रियता दिखाए, तो “हाथी” फिर यूपी की राजनीति में अपनी चाल दिखा सकता है।
