डॉ. राजेश्वर सिंह का राष्ट्रवादी संदेश: “जातिवाद नहीं, राष्ट्रवाद ही भारत की पहचान बने”

शकील अहमद

लखनऊ। वरिष्ठ भाजपा नेता एवं सरोजनीनगर विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने सोमवार को अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक विचारोत्तेजक संदेश जारी करते हुए कहा कि “जब राजनीति मिशन थी, तब भारत बढ़ा; जब राजनीति जाति बनी, तब भारत रुक गया।”

डॉ. सिंह ने कहा कि आज़ादी के बाद राजनीति का अर्थ राष्ट्रसेवा, विकास और परिवर्तन था, लेकिन समय के साथ राजनीति की दिशा बदल गई। “सेवा” की जगह “समीकरण” और “समीकरण” की जगह “जाति” ने ले ली।

“जातीय दलों ने राष्ट्रीय एकता को कमजोर किया”

डॉ. सिंह ने कहा कि देश के कई प्रांतों में कुछ दलों ने जाति और क्षेत्रीयता को अपनी स्थायी राजनीतिक पूंजी बना लिया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी, राजद, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस और अकाली दल जैसे दलों ने अपने-अपने राज्यों में जातीय और क्षेत्रीय पहचान को राष्ट्रहित से ऊपर रखा। उन्होंने कहा, “इन दलों ने अपने मतदाताओं को सिखाया- जाति बचाओ, प्रदेश बचाओ; पर राष्ट्र की बात कोई न करे।”

“जातिवाद ने प्रशासन और विकास दोनों को किया प्रभावित ”

डॉ. सिंह ने कहा कि जाति आधारित राजनीति ने न केवल राष्ट्रीय एकता को आघात पहुँचाया, बल्कि शासन व्यवस्था को भी कमजोर किया। योग्यता के स्थान पर जातीय वफादारी को प्राथमिकता दिए जाने से प्रशासनिक निष्पक्षता और मेरिट का ह्रास हुआ। उन्होंने कहा कि “1990 से 2015 के बीच जब उत्तर प्रदेश और बिहार में जातीय राजनीति अपने चरम पर थी, तब विकास दर 3 प्रतिशत से भी कम रही; जबकि गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे नीति आधारित राज्यों ने 7–8 प्रतिशत की दर से प्रगति की।”

“जातिवाद भारत की आत्मा पर प्रहार है”

डॉ. सिंह ने कहा कि जब संसद और विधानसभाओं में निर्णय राष्ट्रहित के बजाय जातीय गणित पर होने लगते हैं, तब लोकतंत्र की आत्मा कमजोर पड़ती है। “जो दल समाज को जातियों में बाँटते हैं, वे भारत के संविधान और सनातन धर्म- दोनों की आत्मा को ठेस पहुँचाते हैं,” उन्होंने कहा।

उन्होंने बताया कि जीएसटी, महिला आरक्षण और समान नागरिक संहिता जैसे कई राष्ट्रहितकारी विधेयक वर्षों तक इसी कारण अटके रहे क्योंकि कुछ दलों ने जनहित से ऊपर जातीय हित को रखा।

“युवाओं से अपील – जाति वोट नहीं, जहर है”

डॉ. सिंह ने युवाओं से आह्वान किया कि वे जातिवादी राजनीति को अस्वीकार करें और राष्ट्रवादी सोच को अपनाएँ। उन्होंने कहा, “सामाजिक न्याय का अर्थ अवसर देना है, समाज को तोड़ना नहीं। जाति की राजनीति तात्कालिक सत्ता दे सकती है, लेकिन आने वाली पीढ़ियों का भविष्य नष्ट कर देती है।”

राष्ट्रनीति के पाँच सूत्रीय समाधान

डॉ. सिंह ने राष्ट्र की राजनीति को पुनर्जीवित करने हेतु पाँच बिंदु सुझाए
1-भारत पहले, बाकी बाद में।
2-विकास और सुशासन की राजनीति को बढ़ावा।
3-युवाओं को बताओ – जाति वोट नहीं, जहर है।
4-सामाजिक न्याय का अर्थ अवसर दो, समाज तोड़ो नहीं।
5-जो एकता की बात करे उसे सशक्त करो, जो जाति की बात करे उसे अस्वीकार करो।

जो भारत को जोड़ता है, वही सच्चा देशभक्त”

अपने संदेश के समापन में डॉ. सिंह ने लिखा, “जो भारत को जोड़ता है, वही सच्चा देशभक्त है; जो भारत को बाँटता है, वह इतिहास में लांछित रहेगा। जब भारत एक होगा, तभी भारत श्रेष्ठ बनेगा।”

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